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बरखा मदान (ग्यालटेन समतेन)

कौन हैं बरखा मदान (ग्यालटेन समतेन) ? बॉलीवुड स्टार से बौद्ध भिक्षु बनीं बरखा मदान के बारे में जानें सबकुछ

Hindi News, July 14, 2025July 14, 2025

बरखा मदान (ग्यालटेन समतेन): नमस्कार, दोस्तों आज हम आपको एक ऐसी अभिनेत्री के बारे में बताएंगे जो बॉलीवुड की लाइमलाइट से दूर होकर एक भिक्षुणी बनकर अपना जीवन जी रहीं हैं। जी हाँ हम बात कर रहे हैं बरखा मदान जो की अब ग्यालटेन समतेन के नाम से भी जानी जाती हैं। बरखा मदान एक पूर्व मॉडल, अभिनेत्री, ब्यूटी क़्वीन और प्रोडूसर हैं जो कि अब एक बौद्ध भिक्षुणी बन गई हैं। आईये इनके बारे में पूरी जानकारी लेते हैं।

कौन हैं बरखा मदान

बरखा मदान एक बौद्ध भिक्षुणी हैं जो की पहले एक एक मॉडल और अभिनेत्री थी। मिस इंडिया ऐश्वर्या राय और सुस्मिता सेन जैसी अभिनेत्रियों को टक्कर देती थी बरखा मदान। बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपनी एक अच्छी पहचान के होते उन्होंने चकाचौंध की इस दुनिया को छोड़कर अध्यात्म का जीवन अपनाया।

बरखा मदान सबसे पहले मॉडलिंग की दुनिया में मशहूर हुईं, जहां उन्होंने वर्ष 1994 की मिस इंडिया प्रतियोगिता में अपनी पहचान बनाई, जिसमें सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय बच्चन जैसी मशहूर हस्तियों के साथ कंपटिट किया। उन्होंने जल्द ही बॉलीवुड में कदम रखा और साल 1996 की फिल्म ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ से अभिनय की शुरुआत की।

अभिनेत्री से भिक्षुणी तक का सफर

ग्लैमर की दुनिया में मशहूर होने के बाद बरखा को अपनी जिंदगी का लक्ष्य साल 2012 में मिला। जब उनके मन में दलाई लामा के प्रति गहरी श्रद्धा जागी। उनसे प्रेरित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। कहते हैं कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा छोटी उम्र में ही शुरू हो गई थी, जब वह छठी कक्षा के दौरान सिक्किम के एक मठ में गई थीं। यहीं पर उन्हें पहली बार संस्कृति से गहरा जुड़ाव महसूस हुआ था।

फिल्मी दुनिया में आने के बाद भी बरखा का अध्यात्म के प्रति झुकाव होता गया और वह मठ में वापस आ गईं। आज वह पूरी तरह से मठ का जीवन अपना चुकी हैं। वह ग्याल्टेन समतेन नाम से जानी जाती हैं और दूरदराज के पहाड़ी मठों में रहती हैं और आध्यात्मिक विकास के लिए समर्पित जीवन जी रही हैं। और कभी-कभी इंस्टाग्राम पर अपनी आध्यात्मिक यात्रा की झलकियाँ साझा करती हैं।

इंटरव्यू में कही ये बातें

उनके साथ साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि “ज़िंदगी अब आसान हो गई है। मुझे तैयार होने में 10 मिनट से ज़्यादा नहीं लगते, और मेरा सारा सामान एक ही सूटकेस में समा जाता है। मेरे पास बस दो चोगे, एक जोड़ी चप्पल, बौद्ध ग्रंथों तक पहुँचने के लिए एक लैपटॉप और एक मोबाइल फ़ोन है। मैं बहुत आज़ाद महसूस करती हूँ,”। यह समय उनके लिए संतोषजनक तो था साथ ही काफी भावुक भी रहा।

उन्होंने बताया “जिस समय मेरा सिर मुंडाया गया और मुझे एक चोगा पहनाया गया, तो ज़मीन पर अपना प्रतिबिंब देखकर मैं टूट गई। यह एक ऐसा पल था जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था, और जब वह आया, तो जैसे पलक झपकते ही आ गया हो। इसके बाद, मैं काफ़ी देर तक चुप रही, पहली गैर-हिमालयी भारतीय भिक्षुणियों में से एक होने के नाते खुशी से अभिभूत थी।”

यह भी जानें : पूजनीय संत श्री रामचंद्र डोंगरेजी महाराज कौन थे, और आखिर क्यों इनको कलयुग का कर्ण कहा जाता है।

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