जब हम हार्ट अटैक यानी दिल के दौरे की बात करते हैं, तो ज़्यादातर लोगों के ज़हन में बुज़ुर्गों की छवि उभरती है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि आजकल ये बीमारी सिर्फ बड़ों तक सीमित नहीं रह गई है। बच्चों और किशोरों में भी हार्ट अटैक के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। यह चिंता का विषय है, लेकिन सही जानकारी और थोड़ी सी सावधानी से इससे बचा भी जा सकता है।
हार्ट अटैक आखिर होता क्या है?
हार्ट अटैक तब होता है जब दिल को खून पहुँचाने वाली धमनियों (कोरोनरी आर्टरी) में रुकावट आ जाती है। इससे दिल को ऑक्सीजन और पोषण नहीं मिल पाता और दिल की मांसपेशियां धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। यदि तुरंत इलाज न मिले तो यह जानलेवा भी हो सकता है।
क्या बच्चों को हार्ट अटैक आ सकता है?
यूँ तो बड़े बुजुर्गों में हार्ट अटैक आना नॉर्मल हो रखा था लेकिन अब बच्चों को हार्ट अटैक आना या उनमे इसके लक्षण होना सामने आ रहा है। जी हां, हाल के कुछ सालों में डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने देखा है कि बच्चे, खासकर किशोर अवस्था में, हार्ट से जुड़ी गंभीर समस्याओं का शिकार हो रहे हैं। हालांकि इनकी वजहें बड़ों से कुछ अलग होती हैं।
बच्चों में हार्ट अटैक के संभावित कारण
- जन्मजात हृदय रोग (Congenital Heart Disease): कुछ बच्चे जन्म से ही दिल की किसी गड़बड़ी के साथ पैदा होते हैं, जैसे छेद होना या दिल की नलियों का संकरा होना।
- मायोकार्डाइटिस (Myocarditis): यह एक प्रकार की सूजन है जो दिल की मांसपेशियों को प्रभावित करती है, और यह वायरल इन्फेक्शन के कारण हो सकती है।
- कोरोनरी आर्टरी की असामान्यता: कभी-कभी दिल की नसें सामान्य स्थान पर नहीं होतीं, जिससे अचानक रक्त प्रवाह रुक सकता है।
- कोलेस्ट्रॉल और मोटापा: अगर बच्चा ज्यादा जंक फूड खा रहा है और शारीरिक गतिविधि कम है, तो कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगता है जिससे दिल की नलियाँ बंद हो सकती हैं।
- दवा या ड्रग्स का सेवन: कुछ किशोर गलती से या फैशन में ड्रग्स का सेवन कर बैठते हैं, जो दिल की गति और धमनियों पर खतरनाक असर डाल सकते हैं।
- फैमिली हिस्ट्री: अगर परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास है तो बच्चों को भी खतरा हो सकता है।
लक्षण
छोटे बच्चों में हार्ट अटैक के लक्षण हमेशा वयस्कों जैसे स्पष्ट नहीं होते, लेकिन इन बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है:
- छाती में दर्द या भारीपन
- साँस लेने में तकलीफ़
- बार-बार थकान महसूस होना
- त्वचा का नीला पड़ना (खासकर होंठ और उंगलियां)
- अचानक बेहोश हो जाना
- तेज़ या अनियमित धड़कन
अगर ये लक्षण दिखें, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
बचाव के उपाय
- संतुलित आहार: बच्चों की डाइट में फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज और कम वसा वाला खाना शामिल करें।
- नियमित व्यायाम: बच्चों को रोज़ाना खेलने या कोई शारीरिक गतिविधि करने के लिए प्रोत्साहित करें।
- स्क्रीन टाइम सीमित करें: दिनभर मोबाइल, टीवी और गेम्स की बजाय एक्टिव लाइफस्टाइल को बढ़ावा दें।
- नियमित हेल्थ चेकअप: अगर परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास है तो समय-समय पर हार्ट की जांच ज़रूर कराएं।
- तनाव से बचाएं: स्कूल या पढ़ाई का तनाव भी बच्चों के दिल पर असर डाल सकता है, इसलिए उन्हें समझें और सपोर्ट करें।
- खुले में खेलना: बच्चों को धूप में खेलने देना विटामिन D के लिए ज़रूरी है, जो दिल की सेहत में भी मदद करता है।
बच्चों का दिल बेहद नाज़ुक होता है, लेकिन सही देखभाल और समझदारी से उसे मजबूत बनाया जा सकता है। माता-पिता और अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की छोटी-छोटी तकलीफ़ों को भी गंभीरता से लें। याद रखिए, “एक मजबूत दिल की नींव बचपन में ही रखी जाती है।”