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Garhwali Bhasha Divas: उत्तराखंड में मनाया जाता है गढ़वाली भाषा दिवस, जानें कब मनाया जाता है

गढ़वाली भाषा दिवस

गढ़वाली भाषा दिवस

Garhwali Bhasha Divas : दोस्तों उत्तराखंड की संस्कृति और भाषा बड़ी ही सुन्दर है। जिस प्रकार यहाँ प्रकृति के सुन्दर है, उसी प्रकार यहाँ की भाषा और संस्कृति भी वर्णन करने योग्य है। किन्तु बीते कुछ वर्षों से यहाँ की नई पीढ़ियां यहाँ की बोली भाषा और संस्कृति को भूलती जा रही है। यहाँ की गढ़वाली भाषा को याद रखने व सम्मान दिलाने के लिए राज्य में ‘गढ़वाली भाषा दिवस’ मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष यह दिवस 2 सितंबर को मनाया जाता है। आईये हम आपको इसके विषय में कुछ जानकारी देते हैं।

गढ़वाली भाषा दिवस

गढ़वाली भाषा देश के उत्तराखंड राज्य में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। यहाँ के लोग इसी भाषा को बोलते हैं। किन्तु कुछ लोगों का कहना है कि यह भाषा नहीं बोली है। जिस कारण अभी तक इस भाषा को सम्मान नहीं मिल पाया है। इसलिए 2 सितम्बर को गढ़वाली भाषा दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। ताकि गढ़वाली भाषा को सम्मान दिलाया जाए। और यहाँ के लोग अपनी भाषा को न भूलें और इस पर गर्व करें।

यह दिवस मनाने का कारण

जैसे कि हमने आपको कि गढ़वाली भाषा को सम्मना दिलाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। हालाँकि यह इसका प्रमुख कारण अवश्य है। किन्तु इसके अलावा एक और कारण से यह दिन गढ़वाली भाषा के रूप में मनाया जाता है। 2 सितंबर वर्ष 1994 को मसूरी गोलीकांड के दौरान कई सैनिक शहीद हुए थे। इसलिए 2 सितम्बर को इन आंदोलनकारियों के सम्मान में भी मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की पहल पर्वतीय राज्य मंच द्वारा की गयी थी। यह पहल 2018 में की गयी। जिसके बाद यह दिवस लगातार मनाया जाने लगा। मिली जानकारी के अनुसार 1 सितंबर को कुमाउँनी भाषा दिवस भी मनाया जाता है।

गढ़वाली एक भाषा या बोली

हमने आपको बताया कि कुछ लोगों का कहना है कि गढ़वाली एक भाषा नहीं है बल्कि यह एक बोली है। किन्तु कई लोग इस तथ्य से सहमत नहीं हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि ‘जब भी कोई बोलीं साहित्यिक रूप ले लेती है, तो वह बोली नहीं रहती बल्कि भाषा बन जाती है’। इतना ही नहीं बल्कि गढ़वाली भाषा में कई फिल्में और एल्बम बन चुकी हैं। और गढ़वाली में साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पुस्तकें छप चुकी हैं। इसीलिए गढ़वाली एक बोली नहीं बल्कि एक भाषा है।

शब्दों की विशेषता

गढ़वाली भाषा स्वयं में एक पूर्ण भाषा है। इसीलिए इसके शब्दों की एक अलग ही विशेषता है।

हिंदी शब्द शरारत को गढ़वाली मे उतराडुयूँ ,बिगच्युं ,चबटालू, थीणक्यूं आदि कई शब्द है। खुजली के गढ़वाली में अलग अलग शब्द हैं, जैसे रोग वाली खुजली को खाज्जी कहते हैं। यदि खटमल,पिस्सू,या किसी कीट ने काट लिया तो उसे कनयै कहते हैं। और अरबी से लगने वाली खुजली को क्योंकाली लगना कहते हैं। ये सब अनेकार्थी शब्द हैं। कहने का अभिप्राय यह है,कि हिंदी में एक शब्द है,खुजली के लिए एक शब्द के गढ़वाली  ,में अलग प्रकार की खुजली के लिए अलग अलग शब्द हैं।

आईये आपको कुछ अन्य शब्दों की जाकारी देते हैं।

यहाँ की भाषा का पिछड़ने का कारण

उत्तराखंड के न केवल पहाड़ी इलाके बल्कि यहाँ की भाषा भी पिछड़ती जा रही है। नई पीढ़ियां अपनी भाषा को भूलते जा रही है। इसका मुख्य कारण पहाड़ से पलायन है। लोग शहर जाकर न तो खुद अपनी भाषा में बात करते हैं और न ही अपने बच्चों की गढ़वाली भाषा सिखाते हैं। लोगों को अपनी गढ़वाली भाषा बोलने में बड़ी शर्म आती है। यहाँ के स्कूलों में गढ़वाली भाषा भी पढ़ाई जानी चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं होता। गढ़वाली भाषा का पिछड़ने का यह भी एक प्रमुख कारण है।

भाषा के रूप

उत्तराखंड में भोली जानें वाली गढ़वाली भाषा के कई रूप हैं। जो कि निम्नलिखित हैं।

गढ़वाली भाषा दिवस पर गढ़वाली कवि दीनदयाल बंदूणी जी की कुछ सुन्दर पंक्तियाँ

गढ़वऴि भाषा कु दिवस च, बल आज.
भाषा अपड़ि हमन बचांण, चल आज..

गढ़वऴि ब्वाला- बच्यावा, याच स्वाणी,
निकनि बड़ि आदिमै जनि, नकल आज..

हम जो गढ़वऴि भाषा, बखत्वार छवां,
पैलि जै – ऐना म द्याखा, सकल आज..

भूल हमरि च, हिंदि- अंग्रेजि फुकदवां,
कना छवां- गढ़वऴि दग्ड़ी, छल आज..

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